Saturday, January 23, 2010
एक प्रहार काफ़ी नहीं
इस साल में रीलीज़ हुई दूसरी सुपरहिट मराठी मूव्ही है- ’शिक्षणाच्या आयचा घो...’. रीलीज़ होने से पहले ही, विवादों से घिरी इस फ़िल्म ने हमारी शिक्षापद्धती पर एक ज़ोरदार प्रहार लगाया है. पहली बात तो ये है के, यह फ़िल्म टिपिकल महेश मांजरेकर की फ़िल्म लगी. ’हिम्मत असेल तर अडवा...’ इस टॅगलाईन के साथ वे फ़िर से इस फ़िल्म द्वारा जुड़े रहे. हालही में पढ़ाई के दबाव की वजह से काफ़ी छात्रोंने खुदखुशी का मार्ग अपनाया है. इसी प्रश्न को लेकर यह फ़िल्म बनाई गई है.
हमारी शिक्षापद्धती में हम हर एक शिक्षार्थी को ’वेल एज्युकेटेड’ बनाने की कोशिश में लगे रहते है. लेकिन कोई यह नहीं सोचता के, हर बच्चे में क्या खूबियां है. अगर वह बच्चा अपनी पसंद के क्षेत्र में करीयर करेगा तोही बड़ा कामयाब और काबिल आदमी बन सकता है. यही इस फ़िल्म से सिखने को मिलता है. बच्चे ऐसे ही खुदखुशी नहीं करते, उन के मन में तैयार हुआ दबाव उन्हें खुदखुशी करने को मजबूर करता है, यही सत्य है.
फ़िल्म में एक बात नज़र आई के, भरत ज़ाधव का आज तक का सबसे अच्छा पर्फ़ोर्मेंस इस फ़िल्म में हुआ है. आज तक उसने बक़्वास कॉमेडी रोल कर के अपनी जो प्रतिमा बनाई थी, वो इस फ़िल्म से कुछ हद तक कम हो सकती है. ’दे धक्का के बाद सक्षम कुलकर्णी और गौरी वैद्य की भाई-बहन की जोडी फ़िर से कमाल कर गई है. भविष्य में दोनो ही मराठी फ़िल्मों में बहुत आगे जाने की क्षमता रखते है. ज्वलंत विषय होने की वजह से इस की कहानी के बारे में कोई चिंता ही नही थी. फ़िल्म का संगीत भी मन लुभावन रहा. टायटल गीत बच्चो के कोरस ने बखुबीसे गाया है. ’शिवाजी राजे...’ की तरह यह फ़िल्म भी एक नया माईलस्टोन तयार करेगी, इस में कोई शंका नही. आशा है की, अब महेश मांजरेकर आगे भी मराठी मूव्हीजगत में तरह-तरह के प्रयोग करते रहेंगे.
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